shayari chahie

Shayari chahie

shayari chahie


कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को, 
याद वही आते हैं जो उड़ जाते हैं

---

ये तेरे इश्क का कितना हसीन एहसास है,
लगता है जैसे तू हर-पल मेरे साथ है,
मोहब्बत तेरी दीवानगी बन चुकी है मेरी,
अब जिंदगी की आरज़ू सिर्फ तेरा साथ।

---

एक ही ख्वाब ने सारी रात जगाया, 
मैंने हर करवट सोने की कोशिश की है

---

वो दिल ही क्या जो किसी से वफ़ा ना करे,
तुझे भूल कर हम जिएं कभी खुदा ना करे,
रहेगी तेरी मोहब्बत मेरी जिंदगी बन कर,
ये बात और है कि ज़िन्दगी वफ़ा ना करे।

---

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, 
लोग साथ आते गए कारवां बनता गया

---

जाहिर नहीं करता पर मैं रोज रोता हूँ,
शहर का दरिया मेरे घर से निकलता है।

---

हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

---

मेरा शहर तो बारिशों का घर ठहरा,
यहाँ आँख हों या बादल बहुत बरसते हैं।

---

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले

---

यह हम ही जानते हैं जुदाई के मोड़ पर,
इस दिल का जो भी हाल हुआ तुझे देख कर।

---

कभी हंसना, कभी रोना, कभी हैरान हो जाना,
मोहब्बत क्या भले चंगे को दीवाना बनाती है

---

खुशी की परछाइयों का नाम है दोस्ती,
गमों की गहराईओं का जाम है दोस्ती,
एक प्यारा सा दोस्त है हमारा यहाँ,
उसकी प्यारी सी हँसी का नाम है दोस्ती।

---

कौन समझे शेर ये कैसे हैं और कैसे नहीं,
दिल समझता है कि जैसे दिल में थे वैसे नहीं

---

तहज़ीब के खिलाफ हुआ सच का बोलना,
अब झूठ ज़िन्दगी के सलीक़े में आ गया।

---

मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफसोस,
यूं तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए

---

सारी फितरत नकाबों में छुपा रखी है,
​सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी है।

---

तेरे आने की क्या उम्मीद मगर, कैसे कह दूं कि इंतज़ार नहीं

---

कुछ रोज़ ये भी रंग रहा तेरे इंतज़ार का,
आँख उठ गई जिधर बस उधर देखते रहे।

---

मांगकर तुझसे खुशी लूं मुझे मंज़ूर नहीं,
किस का मांगी हुई दौलत से भला होता है

---

गर्मी-ए-हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं,
हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते हैं,
शमा जिस आग में जलती है नुमाइश के लिए,
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं।

---

वक्त रहता नहीं कहीं टिक करआदत इसकी भी आदमी-सी है

---

ज़िन्दगी बैठी थी अपने हुस्न पे फूली हुई,
मौत ने आते ही सारा रंग फीका कर दिया।

---

नए दौर के नए ख़्वाब हैं, नए मौसमों के गुलाब हैं 
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं, इन्हें नफरतों की हवा न दो

---

ढूढ़ोगे कहाँ मुझको मेरा पता लेते जाओ,
एक कब्र नई होगी एक जलता दिया होगा।

---

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवाओं में,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

---

जिसको खुश रहने के सामन मयस्सर हों सब,
उसको खुश रहना भी आये ये जरूरी तो नहीं।

---

जिसको खुश रहने के सामान मयस्सर सब हों, 
उसको खुश रहना भी आए ये ज़रूरी तो नहीं

---

अपने दिल में हमें भी बसाए रखना
हमारी यादों के चराग जलाए रखना,
बहुत लंबा है ज़िंदगी का सफ़र मेरे दोस्त
इसका हिस्सा हमें भी बनाए रखना।

---

हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना

---

एहसान रहा इलजाम लगाने वालो का हम पर,
उठती उगलियो ने मशहूर कर दिया।

---

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया

---

किसी ने मुझसे पूछा ज़िन्दगी कैसे बर्बाद हुई,
मैंने ऊँगली उठायी और मोबाइल पर रख दी।

---

रातों को चलती हैं मोबाइल पर उंगलियां,
सीने पर किताबें रखकर सोए काफी वक्त हो गया

---

मेरा दिल भी कभी तुझसे पूछेगा एक दिन,
तूने किसको आबाद किया मुझे बर्बाद करके।

---

याद रखना ही मोहब्बत में नहीं है सबकुछ,
भूल जाना भी बड़ी बात हुआ करती है

---

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे काबिल नहीं रहे।

---

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.

---

अजीब फ़ुर्सत-ए-आवारगी मिली है मुझे सनम,
बिछड़ के तुझसे ज़माने का खौफ नहीं है कोई।

---

तू भी आईने की तरह बेवफा निकला,
जो सामने आया उसी का हो गया

---

तुमको याद रखने में मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ
जो दिल में बात हैं तुमको बताना भूल जाता हूँ,
तुम्हारे लब को छूने का इरादा रोज करता हूँ
नजर तुमसे जो मिल जाये ज़माना भूल जाता हूँ।

---

दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

---

इश्क़ की गहराईयों में खूबसूरत क्या है,
मै हूँ तुम हो किसी और की ज़रूरत क्या है।

---

चलती-फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी, मां देखी है

---

तेरी मेरी मोहब्बत पर लोग क्या सोचेंगे,
यह भी हम सोचेंगे तो लोग क्या सोचेंगे।

---

हर एक बात को चुपचाप क्यों सुना जाए?
कभी तो हौंसला कर के नहीं कहा जाए.

---

दिखावे की मोहब्बत तो जमाने को है हमसे पर,
ये दिल तो वहाँ बिकेगा जहाँ ज़ज्बातो की कदर होगी।

---

साहिल के सुकून से किसे इनकार है लेकिन,
तूफ़ान से लड़ने में, मज़ा ही कुछ और है

---

आज तेरी याद को सीने से लगा के रोये
खयालो में तुझे पास बुलाके रोये,
हज़ार बार पुकारा तुझको तन्हाई में
हर बार तुझे पास न पाकर रोये।

---

मेरी ख़्वाहिश है कि आंगन में ना दीवार उठे,
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले

---

हाथ छूटे भी तो, रिश्ते नहीं छूटा करते,
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं टूटा करते।

---

दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे-मारे लोग,
जो होता है सह लेते हैं, कैसे हैं बेचारे लोग

---

ज़ख्म क्या होता है ये बताएँगे किसी रोज
कमाल की ग़ज़ल तुमको सुनाएंगे किसी रोज,
थी उन की जिद के मैं जाऊं उनको मनाने
मुझे ये वहम था कि वो बुलाएँगे किसी रोज।

---

ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की,
जब होता है कोई हमदम होता है

---

सुना है हमने भी उम्मीद पे जीता है जमाना,
क्या करे वो जिसकी कोई उम्मीद ही न हो।

---

उसकी याद आई है सांसो, ज़रा आहिस्ता चलो,
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल होता है

---

वह जो औरों को बताती है जीने के तरीके,
खुद अपनी मुट्ठी मेँ मेरी जान लिए बैठी है।

---

ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने,
बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वो भी ना मिला

---

एक साथ चार कंधे देख कर ज़हन में आया,
एक ही काफी था, गर जीते जी मिला होता।

---

बहुत हसीन-सी बातें, नफ़ीस-सा लहज़ा,
जब दिखे समझिये कि झूठ का पुलिंदा है

---

एक पल में ज़िन्दगी भर की उदासी दे गया
वो जाते जाते कुछ फूल बासी दे गया,
नोच कर शाखों के तन से खुश्क पत्तों का लिबास
ज़र्द मौसम, बाँझ रुत को बे-लिबासी दे गया।

---

अब हवाएं ही करेंगी रोशनी का फ़ैसला,
जिस दीये में जान होगी, वो दीया रह जाएगा

---

में कभी पुराने फ़टे कपड़े पहनने में नही हिचकिचाता,
मुझे याद है वो तपते दिनों में पापा का काम करना।

---

याददाश्त का कमजोर होना उतना भी बुरा नहीं..
बड़े बैचेन रहते हैं वो जिन्हें हर बात याद रहती है

---

चाहा है तुम्हें अपने अरमान से भी ज्यादा
लगती हो हसीन तुम मुस्कान से भी ज्यादा,
मेरी हर धड़कन हर साँस है तुम्हारे लिए
क्या माँगोगे जान मेरी जान से भी ज्यादा।

---

मुश्किलों से घबराता कौन है! :

---

एक तुम हो कि वफा तुमसे न होगी, न हुई,
एक हम कि तकाजा न किया है, न करेंगे।

---

उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक़,
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

---

उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है,
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती।

---

दुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजे रिश्ता,
दिल मिलें या न मिलें हाथ मिलाते रहिए

---

अगर लोग यूँ ही कमियां निकालते रहे तो,
एक दिन सिर्फ खूबियाँ ही रह जायेगी मुझमें।

---

नफ़रतों की जंग में देखो ये क्या-क्या हो गया,
सब्जियां हिंदू हुईं, बकरा मुसलमां हो गया

---

मैं अपने गीत ग़ज़लों से उसे पैगाम देता हूं
उसी की दौलत उसी के नाम करता हूं,
हवा का काम है चलना दीये का काम है जलना
वो अपना काम करती है मैं अपना काम करता हूँ।

---

खुद पुकारेगी मंज़िल तो ठहर जाऊंगा,
वरना खुद्दार मुसाफ़िर हूं गुज़र जाऊंगा.

---

सुनो दोस्तो अच्छा एक सिगरेट पी के आता हूँ,
एक याद फसी है उसे धुए में उड़ा के आता हूँ।

---

तमाम उम्र हम एक-दूसरे से लड़ते रहे,
मगर मरे तो बराबर में जाके लेट गए

---

कुछ खूबसूरत से पल किस्सा बन जाते हैं
जाने कब जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं,
कुछ लोग अपने होकर भी अपने नहीं होते, और
कुछ बेगाने होकर भी जीवन का हिस्सा बन जाते है।

---

बात बहुत मामूली-सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा-सी ज़िद ने आखिर दोनों को बर्बाद किया

---

अब कोई ख्वाब नया दिल में उतरता ही नहीं
बहुत ही सख्त पहरा है तुम्हारी चाहत का।

---

ऐसा कहां कि शहर के मंज़र बदल गए
मंज़र वही हैं सिर्फ़ सितमगर बदल गए

---

अक्सर दिखावे का प्यार ही शोर करता है,
सच्ची मोहब्बत तो इशारों में ही सिमट जाती है।

---

बदला ना अपने आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

---

जानता हूँ कि मुझ में बहुत सी कमियां हैं,
अगर आप मुकम्मल हैं तो छोड़ दीजिये मुझे।

---

शुक्र करो हम दर्द सहते हैं, लिखते नहीं,
वरना काग़ज़ों पर लफ्ज़ों के जनाज़े उठते

---

मेरी यादों से अगर बच निकलो
तो ये वादा है मेरा तुमसे,
मैं खुद दुनिया से कह दूंगा
कमी मेरी वफ़ा में थी।

---

उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा,
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा

---

भूलना भुलाना तो बस एक वहम है दिल का,
कोई नही निकलता है, दिल में एक बार बस जाने के बाद।

---

रोज़-रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़ा हूं,
ऐ मुश्किलों देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूं

---

हर रिश्ते का नाम मोहब्बत हो ये जरुरी तो नही,
कभी कभी कुछ बेनाम रिश्तों के लिए भी दिल बेचैन रहता है।

---

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफ़े हैं, आवाज़ में छाले हैं

---

अपनी मर्ज़ी से जिधर चाहें उधर चलते हैं,
हम वही हैं जो ज़माने को बहुत खलते हैं।
Post a Comment (0)
Previous Post Next Post